सादगी और विद्वत्ता के प्रतिरूप: तांटक छंद में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को नमन | जन्म जयंती विशेष। kavitaon_ki_yatra
डॉ. राजेंद्र प्रसाद: संघर्ष से राष्ट्रपति भवन तक, सादगी की अविस्मरणीय यात्रा। Kavitaon_ki_yatra
भावपूर्ण श्रद्धांजलि, सादगी के महानायक को।
छंद साधना: तांटक छंद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को श्रद्धांजलि।
विद्वता और त्याग राजेन्द्र बाबू की जीवन गाथा।
निष्कर्ष और हमारी यात्रा
प्रिय पाठकों और साहित्य सिंधु में डुबकी लगाने वाले साहित्यिक गोताखोरों!
'कविताओं की यात्रा' ब्लॉग पर आप सभी का हार्दिक अभिनंदन है।
आज, 3 दिसंबर को, हम सब भारत रत्न, हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी की जयंती मना रहे हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे जीरादेई (सीवान, बिहार) की माटी के इस लाल को छंदों में याद करने का अवसर मिला है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सर्वोच्च पद पर रहते हुए भी सादगी और विनम्रता को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी विद्वत्ता और त्याग की भावना हर भारतीय के लिए एक प्रेरणास्रोत है।आइए, उन्हीं की सादगी और राष्ट्र के प्रति समर्पण को समर्पित, तांटक छंद में रचित यह विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
छंद साधना: तांटक छंद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को श्रद्धांजलि
ताटंक छंद विधान :-१६-१४ की मात्रा पर यति ३०मात्रा प्रति चरण,चरणान्त तीन गुरु अनिवार्य दो-दो चरण समतुकांत।
जीरादेई नभमंडल में,उग आया वह तारा था।
सदन महादेव-कमलेश्वरी,फैल गया उजियारा था।।
तीन दिसंबर सन् चौरासी,जीरादेई मुस्काया। ।
बाल्यकाल से मेधावी जो, राजेन्द्र वही कहलाया।।
प्रश्न परीक्षा पाँच चयन को, प्रश्न सभी लिखकर बोले।
चयन परीक्षक खुद ही कर लें,सुन सभी पूरे खौले।।
जाँच हुई पर जब प्रश्नों की,चकित देख उत्तर पाया।
देख परीक्षक फिर यह बोले,छात्र पसंद हमें आया।।
विलक्षण प्रतिभा ऐसी उनकी, गाथा जग उनकी गाया।।
जब संविधान लुप्त हुआ तो,उसको फिर से लिख डाला।
शिक्षा व्यवस्था को बल देके,रटना मिथ्या बता डाला। ।
भारत भूषण पाठक'देवांश' 🙏🌹🙏
डॉ राजेंद्र प्रसाद जी का योगदान
* विद्वत्ता: वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक अत्यंत मेधावी छात्र थे।.
* स्वतंत्रता संग्राम: महात्मा गाँधी जी से प्रेरित होकर, उन्होंने वकालत छोड़कर देश की सेवा को चुना।
* संविधान निर्माण: उन्होंने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में भारत के संविधान को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभाई।
निष्कर्ष एवं श्रद्धांजलि
डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी के जीवन में श्रीराम जी के जीवन चरित की प्रेरणा का दर्शन होता है, जो हर भारतीय के लिए एक पाठ है कि कैसे सादगी और विनम्रता के साथ भी सर्वोच्च सम्मान और यश प्राप्त किया जा सकता है। उनकी जयंती पर 'कविताओं की यात्रा' परिवार उन्हें शत-शत नमन करता है।
Shriramayanamritam part-7। kavitaon_ki_yatra
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आपको ताटंक छंद में रचित यह विनम्र श्रद्धांजलि कैसी लगी ?
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https://kavitaonkiyatra68.blogspot.com/?m=1कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
१.पंचचामर छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर- पंचचामर छंद एक वार्णिक छंद है, जिसमें कुल १६ वर्ण होते हैं। इस छंद का विधान लघु गुरु संयोजन×८=१६
वर्ण तथा मापनी इस प्रकार हैं:-
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२
२.डमरू घनाक्षरी छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर-यह भी एक वार्णिक छंद है जिसमें कुल ३२ वर्ण होते हैं।
डमरू की निनाद डमक डम ,डमक डम की भांति श्रुति में प्रतीत होने वाला यह छंद कवियों द्वारा अति पसंद किया जाता है।
चार पदों वाले इस छंद की मापनी इस प्रकार हैं
८-८-८-८ वर्ण प्रति चरण तुकांत तथा सभी वर्ण लघु होंगे।
३.चुलियाला छंद की परिभाषा तथा विधान बताएं ?
उत्तर- इस मात्रिक छंद में दोहे के विषम चरणों को यथावत(१३ मात्रा) रखकर सम चरणों के पदांत यानि (११ मात्रा) के बाद १२११ जोड़कर लिखा जाता है।
४.छंद विज्ञों के अनुसार चुलियाला छंद का एक और क्या नाम है तथा इसके कितने प्रकार प्रसिद्ध हैं :-
उत्तर-छंद विज्ञों के अनुसार चुलियाला छंद का एक और नाम चूड़ामणि छंद है तथा विद्वानों के अनुसार इसके आठ प्रकार प्रसिद्ध है,जो दोहे के विषम चरणों के ११ मात्रा के बाद आने वाले पचकल मात्राओं में कुछ बदलाव से निर्मित होते हैं।
५.ताण्डव छंद की विधान तथा परिभाषा बताएं ?
उत्तर-यह एक आदित्य जाति का छंद है,जिसमें चार चरण तथा दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने के साथ-साथ पदांत १२१ तथा आरंभ लघु मात्रा से अनिवार्य होता है।
६.आदित्य जाति के छंद से क्या आशय है ?
उत्तर- आदित्य जाति के छंद से आशय ऐसे छंदों से है जिसकी मात्राभार १२ मात्रा प्रतिपद होती है।
७.आँसू छंद के विधान को बताएँ ?
उत्तर:- यह एक समपद मात्रिक छंद है,जिसमें प्रति पद २८ मात्रा,१४-१४ के यति खंडों में विभक्त होकर रहता है।इसमें दो-दो चरणों में समतुकांतता रखी जाती है।
मात्रा बाँट के लिए प्रति चरण की प्रथम दो मात्राएँ सदैव द्विकल के रूप में रहती है जिसमें ११ या २ दोनों रूप मान्य हैं।बची हुई १२ मात्रा में चौकल अठकल की निम्न संभावनाओं में से कोई
भी प्रयोग में लाई जा सकती है,आदरणीय वासुदेव अग्रवाल'नमन' जी के मार्गदर्शनानुसार:-
तीन चौकल
चौकल+ अठकल
अठकल+चौकल
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